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lauki ki kheti ke bare mein

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी भारत में सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और इसके फल साल भर उपलब्ध रहते हैं। लौकी नाम फल के बोतल जैसे आकार और अतीत में कंटेनर के रूप में इसके उपयोग के कारण पड़ा। नरम अवस्था में फलों का उपयोग पकी हुई सब्जी के रूप में और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है। परिपक्व फलों के कठोर छिलकों का उपयोग पानी के जग, घरेलू बर्तन, मछली पकड़ने के लिए जाल के रूप में किया जाता है। सब्जी के रूप में यह आसानी से पचने योग्य है। इसकी तासीर ठंडी होती है और कार्डियोटोनिक गुण के कारण मूत्रवर्धक होता है।  लोकि से कई रोग जैसे की कब्ज, रतौंधी और खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। पीलिया के इलाज के लिए पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है। इसके बीजों का उपयोग जलोदर रोग में किया जाता है।  

लौकी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

लौकी एक सामान्य गर्म मौसम की सब्जी है। खरबूजा और तरबूज की तुलना में लोकि की फसल ठंडी जलवायु को बेहतर सहन करती है। लोकि की फसल पाले को बर्दाश्त नहीं कर सकती। अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ गाद दोमट होती है।  यह भी पढ़ें:
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु अनुकूल होती है। रात का तापमान 18- 22°C और  दिन का तापमान 30-35  इसकी उचित वृद्धि और उच्च फल के लिए इष्टतम होता है। 

खेत की तैयारी     

फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। खेत को प्लॉव से एक बार गहरी जुताई करके तैयार करें उसके बाद इसके बाद 2 बार हैरो की मदद से खेत को अच्छी तरह से जोते। आखरी जुताई के समय खेत में 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।             

बीज की बुवाई

यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए।  यह भी पढ़ें: जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे। पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है। 

रोपाई का समय और तरीका

बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए।  समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है। इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है।  

फसल में खरपतवार नियंत्रण  

खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फसल में समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे ताकि फसल को खरपतवार मुक्त रखा जा सकें।  यह भी पढ़ें: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है | 

फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन

फसल से उचित उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 - 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।    

लौकी के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

  • लौकी (घीया) एक प्रमुख फलीय सब्जी है जो भारतीय खाद्य पदार्थों में आमतौर पर प्रयोग होती है। यह कई प्रमुख रोगों के प्रभावित हो सकती है, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
  • लौकी मोजैक्यूलर वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर पीले या हरे रंग के पट्टे दिखाई देते हैं। यह रोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर असर डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और बीमार पौधों को नष्ट करें।
  • लौकी मॉसेक वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर सफेद या हरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
  • दाग रोग (Powdery Mildew): यह रोग पात्र प्रभावित करके पौधों पर धूल की तरह सफेद दाग उत्पन्न करता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
  • दाग रोग से प्रभावित पौधों को हटाएं और उन्हें जला दें।
  • पौधों की पर्यावरण संगठना को सुधारें, उचित वेंटिलेशन प्रदान करें और पानी की आपूर्ति को नियमित रखें।
  • दाग रोग के लिए केमिकल फंगिसाइड का उपयोग करें, जैसे कि सल्फर युक्त फंगिसाइड।

लौकी के फल की तुड़ाई और पैदावार

फसल की बुवाई और रोपाई के लगभग 50 दिन बाद लौकी उड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब लौकी सही आकर की दिखने लगे तब उसकी तुड़ाई कर ले। तुड़ाई करते समय किसी धारदार चाकू या दराती का इस्तेमाल करें। लौकी को तोड़ते समय फल के ऊपर थोड़ा सा डंठल छोड़ दें जिससे फल कुछ समय तक फल ताजा रहें। लौकी की तुड़ाई के तुरंत बाद पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है। एक एकड़ भूमि से लगभग 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 
जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

लौकी की खेती करके किसान अपनी दैनिक जरूरतों के लिए रोजाना के हिसाब से आमदनी कर सकता है.लौकी आम से लेकर खास सभी के लिए लाभप्रद है. ताजगी से भरपूर लौकी कद्दूवर्गीय में खास सब्जी है. इससे बहुत तरह के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर, जूस वगैरह बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. आजकल मोटापा भी एक रोग बनकर उभर रहा है. इसके नियंत्रण के लिए भी लौकी का जूस पीने की सलाह दी जाती है बशर्ते यह पूरी तरह से आर्गेनिक उत्पादन हो. अगर किसी कीटनाशक या इंजेक्शन का प्रयोग करके इसे उगाया गया हो तो ये काफी नुकसान दायक हो जाती है. यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खांसी या बलगम दूर करने में बहुत फायदेमंद है. इस के मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से ले कर दक्षिण भारत के राज्यों तक की जाती है. निर्यात के लिहाज से सब्जियों में लौकी खास है.

लौकी उगाने का सही समय:

लौकी एक
कद्दूवर्गीय सब्जी है. इसकी खेती गांव में किसान कई तरह से करते हैं इसकी खेती अपने घर के प्रयोग के लिए माता और बहनें अपने बिटोड़े और बुर्जी पर लगा कर भी करती हैं. बाकी किसान इसको खेत में भी करते हैं. लौकी की फसल वर्ष में तीन बार उगाई जाती है. जायद, खरीफ और रबी में लौकी की फसल उगाई जाती है। इसकी बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितम्बर अन्त और प्रथम अक्टूबर में लौकी की खेती की जाती है। जायद की अगेती बुवाई के लिए मध्य जनवरी के लगभग लौकी की नर्सरी की जाती है. अगेती बुबाई से किसान भाइयों को अच्छा भाव मिल जाता है. लौकी उगाने का सही समय

मौसम और जलवायु:

इसके बीज को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्कयता होती है. बाकी इसके फल लगाने के लिए कोई भी सामान्य मौसम सही रहता है. अगर हम बात करें किसान के बुर्जी या बिटोड़े के फल की तो इसकी बुबाई पहली बारिश के बाद की जाती है जो की जून और जुलाई के महीने में होता है और इस पर फल सर्दियों में लगना शुरू होता है. बाकी इसको सभी सीजन में उगाया जा सकता है. बारिश के मौसम में अगर इसको कीड़ों से बचाना हो तो इसको जाल लगा कर जमीन से 5 फुट के ऊपर कर देना चाहिए. इससे मिटटी की वजह से फल खराब नहीं होते तथा इनका रंग भी चमकदार होता है. ये भी पढ़ें: तोरई की खेती में भरपूर पैसा

मिटटी की गुणवत्ता और खेत की तैयारी:

लौकी की फसल के लिए खेत में पुराणी फसल के जो अवशेष हैं उनको गहरी जुताई करके नीचे दबा देना चाहिए. इससे वो खरपतवार भी नहीं बनेंगें और खाद का भी काम करेंगें.इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे इसके खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए इससे इसकी फसल और फल दोनों ही ख़राब होते हैं. खेत से पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. और अगर संभव हो तो इसके खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद कम से कम 50 से 60 कुंतल की हिसाब से मिला दें. इससे खेत को ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.इसकी तैयारी करते समय पलेवा के बाद इसकी जुताई ऐसे समय करें जबकि न तो खेत ज्यादा गीला हो और नहीं ज्यादा सूखा जिससे जुताई करते समय इसकी मिटटी भुरभुरी होकर फेल जाये. इसके बात इसमें हल्का पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत समतल हो जाये और पानी रुकने की संभावना न हो. ये भी पढ़ें: अच्छे मुनाफे को तैयार करें बेलों की पौध

लौकी की कुछ उन्नत किस्में:

सामान्यतः हमारे देश में जिस फसल या सब्जी की किस्म बनाई जाती है वो किसी न किसी कृषि संस्थान द्वारा बनाई जाती है तथा वो संस्थान उस किस्म को अपने संस्थान के नाम से जोड़ देते हैं. जैसे नीचे दिए गए किस्मों के नाम इसी को दर्शाते हैं. नीचे दी गई पैदावार के आंकड़े स्थान, मौसम और जमीन की पैदावार आदि पर निर्भर करते हैं.

कोयम्बटूर‐१:

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर द्वारा उत्पादित यह किस्म उसी के नाम से भी जानी जाती है .यह जून व दिसम्बर में बोने के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है जो लवणीय क्षारीय और सीमांत मृदाओं में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं

अर्का बहार:

यह किस्म खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है. बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुडाई की जा सकती है. इसकी उपज 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.

पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड:

इसको पूसा कृषि संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. यह अगेती किस्म है. इसकी बेलों का बढ़वार अधिक और फैलने वाली होती हैं. फल गोल मुलायम /कच्चा होने पर 15 से 18 सेमी. तक के घेरे वाले होतें हैं, जों हल्के हरें रंग के होतें है. बसंत और ग्रीष्म दोंनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त हैं.

पंजाब गोल:

इस किस्म के पौधे घनी शाखाओं वाले होते है. और यह अधिक फल देने वाली किस्म है. फल गोल, कोमल, और चमकीलें होंते हैं. इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकतें हैं. इसकी उपज 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.

पुसा समर प्रोलेफिक लाग:

यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं. इसकी बेल की बढ़वार अच्छी होती हैं, इसमें फल अधिक संख्या में लगतें हैं. इसकी फल 40 से 45 सेंमी. लम्बें तथा 15 से 22 सेमी. घेरे वालें होते हैं, जो हल्के हरें रंग के होतें हैं. उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

नरेंद्र रश्मि:

यह फैजाबाद में विकसित प्रजाती हैं. प्रति पौधा से औसतन 10‐12 फल प्राप्त होते है. फल बोतलनुमा और सकरी होती हैं, डन्ठल की तरफ गूदा सफेद औैर करीब 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.

पूसा संदेश:

इसके फलों का औसतन वजन 600 ग्राम होता है एवं दोनों ऋतुओं में बोई जाती हैं. 60‐65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता हैं और 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

पूसा हाईब्रिड‐३:

फल हरे लंबे एवं सीधे होते है. फल आकर्षक हरे रंग एवं एक किलो वजन के होते है. दोंनों ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है. यह संकर किस्म 425 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. फल 60‐65 दिनों में निकलनें लगतें है.

पूसा नवीन:

यह संकर किस्म है, फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते है एवं औसतन उपज 400‐450 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म है.

लौकी की फसल में लगने वाले कीड़े :

1 - लाल कीडा (रेड पम्पकिन बीटल):

उपाय: निंदाई गुडाई कर खेत को साफ रखना चाहिए. फसल कटाई के बाद खेतों की गहरी जुताई करना चाहिएए जिससे जमीन में छिपे हुए कीट तथा अण्डे ऊपर आकर सूर्य की गर्मी या चिडियों द्वारा नष्ट हो जायें.सुबह के समय जब ओस हो तब राख का छिड़काव करना चाहिए.

2 - फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई):

क्षतिग्रस्त तथा नीचे गिरे हुए फलों को नष्ट कर देना चाहिए.सब्जियों के जो फल भूमी पर बढ़ रहें हो उन्हें समय समय पर पलटते रहना चाहिए.

लोकी में लगने वाले मुख्य रोग:

  • चुर्णी फफूंदी
  • उकठा (म्लानि)
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की खेती मुख्यतः रबी, खरीफ व जायद तीनों सीजन में की जाने वाली बागवानी फसल है। लौकी को घिया और दूधी के नाम से भी जाना जाता है। लौकी की खेती भारत के तकरीबन समस्त राज्यों में की जाती है। लौकी की फसल समलत खेत, पेड़-पौधे, मचान निर्मित कर व घर की छतों पर बड़ी ही सहजता से की जा सकती है। आगे हम आपको लौकी की खेती के विषय में जानकारी देने वाले हैं।

लौकी की खेती

अगर हम हरी सब्जियों की बात करें तो लौकी का नाम सबसे पहले आता है। यह लोगों के शरीर के लिए काफी फायदेमंद होती है। लौकी के अंदर विटमिन बी, सी, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम एवं सोडियम आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका उपयोग मधुमेह, वजन कम करने, पाचन क्रिया, कोलेस्ट्रॉल को काबू में करने एवं नेचुरल ग्लो के लिए लौकी काफी ज्यादा लाभदायक होती है।

लौकी की खेती की विस्तृत जानकारी

  • लौकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
  • लौकी की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु अच्छी मानी जाती है।
  • बीज अंकुरण के लिए लगभग 30 से 35 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
  • पौधों के विकास के लिए 32 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है।


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लौकी की खेती के लिए भूमि कैसी होनी चाहिए

लौकी की खेती जीवांश युक्त जल धारण क्षमता वाली बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। लौकी की खेती कुछ अम्लीय भुमि के अंतर्गत भी की जा सकती है। लौकी की फसल के लिए 6.0 से 7.0 पीएच वाली मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। खेत से जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें

  • लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी करने के दौरान 8 से 10 टन गोबर की खाद एवं 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।
  • खाद डालने के उपरांत खेत की बेहतर ढ़ंग से गहरी जुताई कर पलेवा कर दें।
  • पलेवा करने के 7 से 8 दिन उपरांत 1 बार गहरी जुताई करदें।
  • इसके उपरांत कल्टीवेटर से 2 बार आडी-तिरछी गहरी जुताई कर पाटा कर खेत को समतल कर लें।

लौकी की बिजाई हेतु समुचित समय

  • खरीफ (वर्षाकालीन) में बुआई का समय- 1 जून से 31 जुलाई के मध्य फसल अवधि- 45 से 120 दिन है
  • जायद (ग्रीष्मकालीन) में बुआई का समय- 10 जनवरी से 31 मार्च के मध्य फसल अवधि- 45 से 120 दिन है
  • रबी के लिए बुआई का समय- सितंम्बर-अक्टूबर

लौकी की प्रजातियां

काशी गंगा

  • काशी गंगा किस्म की लौकी की बढ़वार मध्यम होती है।
  • इसके तने में गाठें काफी हद तक पास-पास होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन तकरीबन 800 से 900 ग्राम होता है।
  • इस प्रजाति को आप गर्मियों में 50 एवं बरसात में 55 दिनों के समयांतराल पर तोड़ सकते हैं।
  • इस किस्म से लगभग 44 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

काशी बहार

  • इस किस्म की लौकी 30 से 32 सेंटीमीटर लंबी एवं 7-8 सेंटीमीटर व्यास होती है।
  • काशी बहार लौकी का वजन लगभग 780 से 850 ग्राम के मध्य होती है।
  • इस किस्म से 52 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।
  • इस किस्म को गर्मी एवं बरसात दोनों मौसम हेतु अनुकूल मानी जाती है।


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पूसा नवीन

  • पूसा नवीन प्रजाति बेलनाकार की होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन तकरीबन 550 ग्राम तक होता है।
  • इस किस्म से 35 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार अर्जित की जा सकती है।

अर्का बहार

  • इस किस्म की लौकी मध्यम आकार एवं सीधी होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन लगभग एक किलोग्राम तक होता है।

पूसा संदेश

  • इस किस्म का फल बिल्कुल गोलाकार होता है।
  • इस प्रजाति की लौकी का वजन लगभग 600 ग्राम तक होता है।
  • पूसा संदेश गर्मी में 60 से 65 दिन तो वहीं बरसात में 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है।
  • इस किस्म से 32 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन अर्जित किया जा सकता है।

पूसा कोमल

  • लौकी की यह किस्म 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है
  • पूसा कोमल किस्म लंबे आकार की होती है।
  • इस किस्म से 450 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

नरेंद्र रश्मि

  • नरेंद्र रश्मि किस्म की लौकी का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है।
  • इसके फल छोटे एवं हल्के हरे रंग के होते हैं।
  • नरेंद्र रश्मि से 30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

लौकी की खेती हेतु बीज की मात्रा

लौकी की 1 एकड़ फसल उगाने के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

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बीज उपचार

हाइब्रिड बीज कम्पनियों द्वारा उपचारित करके बाजार में भेजते हैं, तो इसको उपचारित करने की जरुरत नहीं पड़ती है। इसकी सीधे बिजाई की जाती है। यदि आपने लौकी का बीज घर पर बनाया है, तो उसको उपचारित करना जरूरी है। लौकी के बीज की बिजाई से पूर्व 2 ग्राम कार्बोनडाज़िम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।

लौकी की बुआई का तरीका

  • लौकी की बिजाई के दौरान पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी।
  • पंक्ति से पंक्ति का फासला 150 से 180 सेमी रखें।
  • लौकी के बीज की 1 से 2 सेमी की गहराई पर बिजाई करें।

लौकी की खेती मे उर्वरक व खाद प्रबंधन

  • लौकी की फसल के लिए खेत तैयार करने के दौरान खेत में 8 से 10 टन गोबर की खाद और 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा प्रति एकड़ की दर से खेत में डालनी चाहिए।
  • लौकी की बिजाई के दौरान 50 किलोग्राम डी ऐ पी ( DAP ), 25 किलोग्राम यूरिया ( Urea ), 50 किलोग्राम पोटाश ( Potash ), 8 किलोग्राम जायम, 10 किलोग्राम कार्बोफुरान प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें।
  • लौकी की बिजाई के 20 से 25 दिनों उपरांत 10 ग्राम NPK 19 : 19:19 को 1 लीटर पानी मैं घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से फसल पर छिड़काव करें।
  • लौकी की बिजाई के 40 से 45 दिन बाद 50 किलोग्राम यूरिया को प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें।
  • लौकी की बिजाई के 50 से 60 दिन पर 10 ग्राम NPK 0:52:34 एवं 2 मिली टाटा बहार को 1 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के मुताबिक इस्तेमाल करें।

लौकी की खेती मे सिंचाई

  • जायद की फसल हेतु 8-10 दिनों के समयांतराल पर सिंचाई करें।
  • खरीफ फसल में सिंचाई बारिश के अनुरूप की जाती है, वर्षा न होने की हालत में सिंचाई।
  • खेत की नमी के मुताबिक रबी की फसल में 10 से 15 दिन की समयावधि पर सिंचाई करें।

लौकी की फसल को प्रभावित करने वाले कीड़े

लाल कीडा : पौधो पर दो पत्तियां निकलने के उपरांत इस कीट का प्रकोप चालू हो जाता है। यह कीट पत्तियों व फूलों को खा कर फसल को बर्बाद कर देता है। यह कीट लाल रंग व इल्ली हल्के पीले रंग की होती है। इस कीट का सिर भूरे रंग का होता है।

लाल कीड़ा की रोकथाम कैसे करें

  • खेत की नराई/गुड़ाई करके खेत को साफ सुथरा रखें।
  • फसल कटाई के उपरांत खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे मृदा में छिपे कीट और उनके अण्डे ऊपर पहुँच कर सूर्य की गर्मी अथवा चिडियों द्वारा खत्म कर दिए जायेंगे।
  • कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत दानेदार 7 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से पौधे से 3 से 4 सेमी. फासले से डालकर खेत में पानी लगाए।
  • कीटों की संख्या अधिक होने पर डायेक्लोरवास 76 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

फल मक्खी

प्रौढ़ फल मक्खी घरेलू मक्खी के आकार की लाल भूरे अथवा पीले भूरे रंग की होती है। इसके सिर पर काले अथवा सफेद धब्बे मौजूद होते हैं। इस कीट की मादा फलों को भेदकर भीतर अण्डे देती है। अण्डे से निकलने वाली इल्लियां फलों के गूदे को खा जाती हैं, जिसकी वजह से फल काफी सड़ने लग जाता है। बरसात में की जाने वाली फसल पर इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है।

फल मक्खी की रोकथाम किस प्रकार की जाती है

  • खराब और नीचे गिरे हुए फलों को अतिशीघ्र नष्ट कर देना चाहिए।
  • जो फल भूमि के संपर्क में आते हैं। उनको समयानुसार पलटते रहना चाहिए।
  • इसके प्रकोप से फसल का संरक्षण करने के लिए 50 मीली, मैलाथियान 50 ई.सी. एवं 500 ग्राम शीरा अथवा गुड को 50 लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। एक सप्ताह के उपरांत फिर से छिड़काव करें।

लौकी के मुख्य रोग

चुर्णी फफूंदी

यह रोग फफूंद के कारण फसल पर आता है। सफेद दाग एवं गोलाकार जाल सा पत्तियों एवं तने पर नजर आता है। जो कि बाद मे बढ़कर कत्थई रंग में तब्दील हो जाता है। इसके रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं। इसके प्रकोप से पौधों का विकास बाधित हो जाता है।

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चुर्णी फफूंद रोग की रोकथाम ऐसे करें

  • रोगी पौधे को उखाड़ कर मृदा में दबा दें अथवा उनको आग लगाकर जला दें।
  • फसल को इस प्रकोप से बचाने हेतु घुलनशील गंधक जैसे कैराथेन 2 प्रतिशत अथवा सल्फेक्स की 0.3 प्रतिशत रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई पड़ते ही कवकनाशी दवाइयों का इस्तेमाल 10‐15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

उकठा (म्लानि)

इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाँ मुरझाके नीचे की तरफ लटक जाती हैं एवं पत्तियाँ के किनारे बिल्कुल झुलस जातें हैं। इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना अति आवश्यक होता है। बीज को वेनलेट अथवा बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

लौकी की तुड़ाई एवं पैदावार

लौकी की तुड़ाई उनकी किस्मों पर आधारित होती हैं। लौकी के फलों को पूरी तरह से विकसित होने पर कोमल अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए। बुवाई के 45 से 60 दिनों के पश्चात लौकी की तुड़ाई चालू हो जाती है। प्रति हेक्टेयर जून‐जुलाई एवं जनवरी‐मार्च वाली फसलों में क्रमश 200 से 250 क्विंटल एवं 100 से 150 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है।